Why Should You Read This Summary?
रात 'भक्तमाल' पढ़ते-पढ़ते न जाने कब नींद आ गयी। कैसे-कैसे महात्मा थे जिनके लिए भगवान का प्रेम ही सब कुछ था, इसी में लगे रहते थे। ऐसी भक्ति बड़ी तपस्या से मिलती है। क्या मैं यह तपस्या नहीं कर सकती? इस जीवन में और कौन-सा सुख रखा है? गहनों से जिसे प्यार हो वह जाने, यहाँ तो इनको देखकर आँखें फूटती हैं; धन-दौलत पर जो जान देता हो वह जाने, यहाँ तो इसका नाम सुनकर बुखार-सा चढ़ आता है। कल पगली सुशीला ने कितनी उमंगों से मेरा शृंगार किया था, कितने प्यार से बालों में फूल गूँथे थे।
कितना मना करती रही, न मानी। आखिर वही हुआ जिसका मुझे डर था। जितनी देर उसके साथ हँसी थी, उससे कहीं ज्यादा रोयी। दुनिया में ऐसी भी कोई औरत है, जिसका पति उसका शृंगार देख कर सिर से पाँव तक जल उठे? कौन ऐसी औरत है जो अपने पति के मुँह से ये शब्द सुने- "तुम मेरा परलोक बिगाड़ोगी, और कुछ नहीं, तुम्हारे रंग-ढंग कह रहे हैं।" और उसका दिल जहर खा लेने को न चाहे? भगवान्! दुनिया में ऐसे भी इंसान हैं। आखिर मैं नीचे चली गयी और 'भक्तमाल' पढ़ने लगी। अब वृंदावन-बिहारी ही की सेवा करूँगी, उन्हीं को अपना शृंगार दिखाऊँगी, वह तो देखकर न जलेंगे, वह तो मेरे मन का हाल जानते हैं।
भगवान्! मैं अपने मन को कैसे समझाऊँ! तुम अंतर्यामी हो, तुम मेरे रोम-रोम का हाल जानते हो। मैं चाहती हूँ कि उन्हें अपना भगवान समझूँ, उनके पैरों की सेवा करूँ, उनके इशारे पर चलूँ, उन्हें मेरी किसी बात से, किसी व्यवहार से जरा भी दुख न हो। वह बेकसूर हैं, जो कुछ मेरी किस्मत में था वह हुआ, न उनकी गलती है, न माता-पिता की, सारी गलती मेरे नसीब की ही है।
लेकिन यह सब जानते हुए भी जब उन्हें आते देखती हूँ, तो मेरा दिल बैठ जाता है, मुँह पर मौत-सी छा जाती है, सिर भारी हो जाता है; जी चाहता है इनकी सूरत न देखूँ, बात तक करने को मन नहीं चाहता; शायद दुश्मन को भी देख कर किसी का मन इतना खराब न होता होगा। उनके आने के समय दिल में धड़कन-सी होने लगती है। दो-एक दिन के लिए कहीं चले जाते हैं तो दिल पर से एक बोझ-सा उठ जाता है; हँसती भी हूँ, बोलती भी हूँ, जीवन में कुछ मजा आने लगता है लेकिन उनके आने की खबर पाते ही फिर चारों ओर अंधेरा छा जाता है ! मन की ऐसी हालत क्यों है, यह मैं नहीं कह सकती।
मुझे तो ऐसा जान पड़ता है कि पिछले जन्म में हम दोनों में दुश्मनी थी, उसी दुश्मनी का बदला लेने के लिए इन्होंने मुझसे शादी की है, वही पुराने संस्कार हमारे मन में बने हुए हैं। नहीं तो वह मुझे देख-देखकर क्यों जलते और मैं उनकी सूरत से क्यों नफरत करती? शादी करने का तो यह मतलब नहीं हुआ करता! मैं अपने घर इससे कहीं सुखी थी। शायद मैं जीवन भर अपने घर में मजे से रह सकती थी। लेकिन इस समाज के नियमों का बुरा हो, जो बदकिस्मत लड़कियों को किसी-न-किसी आदमी के गले में बाँध देना जरूरी समझती है।
वह क्या जानता है कि कितनी लडकियां उसके नाम को रो रही हैं, कितनी इच्छाओं से लहराते हुए, कोमल दिल उसके पैरों तले रौंदे जा रहे हैं? लड़की के लिए पति कैसी-कैसी मीठी कल्पनाओं का जरिया होता है। आदमी में जो सबसे अच्छा है, बढ़िया है, उसकी सजीव मूर्ति इस शब्द के ध्यान में आते ही उसकी नजरों के सामने आकर खड़ी हो जाती है। लेकिन मेरे लिए यह शब्द क्या है। दिल में उठने वाला दर्द, कलेजे में खटकनेवाला काँटा, आँखों में गड़ने वाली किरकिरी, आत्मा में चुभनेवाला तानो का तीर!
सुशीला को हमेशा हँसते देखती हूँ। वह कभी अपनी गरीबी की शिकायत नहीं करती; गहने नहीं हैं, कपड़े नहीं हैं, भाड़े के छोटे से मकान में रहती है, अपने हाथ से घर का सारा काम-काज करती है, फिर भी उसे रोते नहीं देखती। अगर अपने बस की बात होती तो आज अपने पैसों को उसकी गरीबी से बदल लेती। अपने पतिदेव को मुस्कराते हुए घर में आते देखकर उसका सारा दुख और गरीबी गायब हो जाते हैं , छाती चौड़ी हो जाती है। उसकी बांहों में वह सुख है, जिस पर तीनों लोक का पैसा न्योछावर कर दूँ।
Puri Kahaani Sune..