Why Should You Read This Summary?
पिछले पार्ट में आपने सुना की शिवाजी ने इन किलों पर कब्ज़ा कर लिया, आदिल शाह के सबसे जाँबाज़ सेनापति अफज़ल शाह को अपनी दूरदर्शिता से मार गिराया और अब आगे....
स्वराज पाने का निश्चय तो हो चुका था पर अभी करने को बहुत काम बाकि था. शिवाजी महाराज अपने वफादार सरदारों के साथ मिलकर अपने सपने को सच का जामा पहनाने में जुट गये. पर सबसे पहले उन्हें जाकर माता जीजाबाई का आशीर्वाद लेना था. इससे पहले कि वो लोग किसी से अपने ईरादे ज़ाहिर करते, उन्हें कुछ जरूरी कदम उठाने थे.
रास्ता एकदम साफ नज़र आ रहा था, सबका एक ही लक्ष्य था, गुलामी की ज़ंजीरो को तोड़ फेंकना. लेकिन उन्हें ये नहीं पता था कि उनका पहला कदम क्या होगा. इसलिए सब लोग इसी बात पर विचार-विमर्श करने के लिए रोहिदेश्वर के मन्दिर में जमा हुए थे.
अब हालात कुछ इस तरह थे कि पुणे की जागीर शिवाजी राजे के नाम थी क्योंकि ये जागीर उनके पिता शाहजी राजे की थी, जो उन्होंने अपने प्यारे पुत्र शिवाजी को विरासत में दी थी. हालाँकि आस-पास के जितने भी किले और गढ़ थे, उन पर आदिलशाह का कब्ज़ा था. इन किलों पर फतह पाने से पहले वहाँ के ईलाको पर अपनी पैठ बनाने की जरूरत थी. शिवाजी और उनके सिपहसालारों इस बात पर सहमत हुए कि अगर उन्हें अपनी स्तिथि मजबूत बनानी है तो सबसे पहले इन सभी किलों को फतह करना होगा.
इसलिए एक चीज़ साफ थी, स्वराज की लड़ाई में पहला कदम था किसी एक किले को आदिलशाह के कब्जे से छुड़ाना, पर सवाल ये था कि सबसे पहले वो किस किले पर कब्जा करे? तो इस समस्या को हल किया शिवाजी के सबसे भरोसेमंद सरदार तानाजी ने. उनके दिमाग में एक शानदार योजना थी. उन्होंने सुझाव दिया कि जिस किले पर वो लोग अभी बैठे है, क्यों ना पहले उसी पर कब्ज़ा किया जाए! रोहिदेश्वर का किला आदिलशाही की हुकूमत के अंदर आता था और उस किले पर ज्यादा पहरेदारी भी नहीं थी, इसलिए इस पर हमला करके आसानी से अपने कब्जे में लिया जा सकता था.
शिवाजी राजे ने किले पर फतह पाने की योजना बनानी शुरू की. किलेदार, जिस पर किले की रखवाली का जिम्मा था, बिल्कुल भी चौकन्ना नहीं था. हालांकि इन मज़बूत किलो को जीतना कोई हंसी-खेल भी नहीं था. इसलिए आदिलशाह किसी भी हमले की शंका से पूरी तरह से निश्चिन्त था. उसने कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि कोई इन किलों पर हमला भी कर सकता है. रोहिदेश्वर का किला एकदम खंडहर हो चुका था.
इसकी हिफाजत करने वाले सिपाही एकदम ढीले-ढाले थे. वर्षो पुरानी दीवारे जगह-जगह से टूट रही थी. अगर ये किला शिवाजी के कब्जे में आता तो वो इसकी मरम्मत करवाके इसकी हालत सुधारते पर उससे पहले तो इसे जीतना था.
शिवाजी के पास अभी एक छोटी सी सिपाहियों की टुकड़ी थी. करीब पन्द्रह सौ मावलास उनके साथ थे. और सबसे बड़ी बात, उनके पास पर्याप्त हथियार और गोला-बारूद भी नहीं थे. उन्हें अभी अपनी सेना के लिए तलवार, भाले और ढाल का इंतजाम करना था. इन सब चीजों का इंतजाम करने के साथ-साथ शिवाजी अपने सैनिको के साथ हर रोज़ युद्ध का अभ्यास भी किया करते थे. उन्हें आने वाले युद्धों की तैयारी करनी थी. वो अपने सिपाहियों के साथ जाकर ईलाके के चप्पे-चप्पे की जानकारी लेते. वहां लाल महल में किसी को समझ नहीं आ रहा था इन सब तैयारियों के पीछे क्या वजह है.
हमले की पूरी तैयारी के बाद शिवाजी ने फैसला किया कि वो लोग पौं फटने के साथ ही रोहिदेश्वर के किले की तरफ कूच करेंगे. वो जानते थे कि उस वक्त सिपाही या तो सोये होंगे या हमले के खतरे से बिल्कुल बेखबर होंगे. शिवाजी राजे और उनके सैनिको ने मिलकर किले के पहरेदारो और किलेदार पर धावा बोल दिया. किलेदार को बंदी बना लिया गया. रोहिदेश्वर का किला अब शिवाजी और उनकी सेना के कब्ज़े में था और ये था स्वराज की दिशा में उठाया गया उनका पहला कदम.
Puri Kahaani Sune...