Why Should You Read This Summary?
यह कहना भूल है कि सुखी शादीशुदा जिंदगी के लिए पति पत्नी के स्वभाव में मेल होना जरूरी है। श्रीमती गौरा और श्रीमान् कुँवर रतनसिंह में कोई बात न मिलती थी। गौरा दयालु थी, रतनसिंह पैसे पैसे का हिसाब रखते थे। वह हँसमुख थी, रतनसिंह चिंता करनेवाले थे। वह खानदान की इज्जत पर जान देती थी, रतनसिंह इसे दिखावा समझते थे। उनके सामाजिक व्यवहार और विचार में भी बड़ा अंतर था। यहाँ दयालुता की बाजी रतनसिंह के हाथ में थी। गौरा को सभी जातियों के एक साथ खाने से तकलीफ थी, विधवाओं की शादी से नफरत और अछूतों के सवालों से विरोध। रतनसिंह इन सभी चीजों को पसंद करते थे। राजनीति के बारे में यह अलगाव और भी उलझा हुआ था ! गौरा अभी के हालातों को अटल, अमर, जरूरी समझती थी, इसलिए वह नरम-गरम, कांग्रेस, आजादी, होमरूल सभी से बेपरवाह थी। कहती- ‘‘ये मुट्ठी भर पढ़े-लिखे आदमी क्या बना लेंगे, चने कहीं भाड़ फोड़ सकते हैं?’’
रतनसिंह पक्के आशावादी थे, राजनीतिक सभा की पहली लाइन में बैठने वाले, काम करने के लिए सबसे पहले कदम उठाने वाले, स्वदेश का व्रत लिए हुए और विदेशी बहिष्कार को पूरी तरह मानने वाले। इतने अलग अलग होने पर भी उनकी शादीशुदा जिंदगी अच्छी थी। कभी-कभी उनमें मतभेद जरूर हो जाता था, पर वे हवा ऐसे झोंके थे, जो शांत पानी को हलकी-हलकी लहरों से सजा देते हैं; वे तेज झोंके नहीं थे जिनसे सागर में तूफान आ जाता है। थोड़ी-सी भी अच्छी इच्छा सारे अलगाव और मतभेदों को खत्म कर देती थी।
Puri Kahaani Sune....